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राष्ट्रीय सेवा योजना स्वयंसेविका तृप्ति जेठानिया की शानदार कविता



राष्ट्रीय सेवा योजना स्वयंसेविका तृप्ति जेठानिया

जन्म  मृत्यु से परे अनोखा है तेरा स्वरूप,
कोमल नही प्रचण्ड बन , तू है साक्षात शक्ति का रूप,
डोल रही है आज धरा, डोल रहा है आसमान,
उठकर अपने अस्तित्व का करो स्वयं सम्मान,
तुम हो दुर्गा तुम हो काली,नही तुम्हारे हाथ है खाली,
शस्त्र उठाकर बनो भवानी, सर से ऊपर जब हो पानी,
सरकार हो गई है बहरी, समाज हो गया अन्धा,
नारी की लाज लुटना बन गया दरिंदो का धन्धा,
क्यूँ अपने अस्तित्व को होने दो खण्ड विखण्ड,
आँख उठाकर जो देखे तुमको, उतार दो उसका मुण्ड,
त्रैता द्वापर जैसा युग नही, जहाँ नारी के सम्मान को हो रामायण और महाभारत,
ये तो कलयुग है जहाँ तुम न इन्सान हो न भारत,
इस घोर अपमान को भी यहाँ बाँटा गया जातियों में,
तुम्हारी रक्षा कर सके, इतनी हिम्मत नही यहाँ खाकियों में,
जिन हाथों से घर सम्भाला उन हाथों से करो संघार,
आज तुम्हारी लाज बचाने नही आएगा कोई अवतार,
जन्म मृत्यु से परे अनोखा है तेरा स्वरूप,
कोमल नही प्रचण्ड बन ,तू है साक्षात शक्ति का रूप..!
 ......✍🏻Trapti Jethaniya

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